siddiqui

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Gazal 4



चुपके से कोई कहता है शाएर नहीं हूँ मैं
क्यूँ अस्ल में हूँ जो वो ब-ज़ाहिर नहीं हूँ मैं

भटका हुआ सा फिरता है दिल किस ख़याल में
क्या जादा-ए-वफ़ा का मुसाफ़िर नहीं हूँ मैं

क्या वसवसा है पा के भी तुम को यक़ीं नहीं
मैं हूँ जहाँ कहीं भी तो आख़िर नहीं हूँ मैं

सौ बार उम्र पाऊँ तो सौ बार जान दूँ
सदक़े हूँ अपनी मौत पे काफ़िर नहीं हूँ मैं|

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1 Comments

Angela

18-Oct-2021 02:31 AM

Lovely😊

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